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आसाम के इस छोटे पेड़ से बनता है एंटीक फर्नीचर

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आसाम के इस छोटे पेड़ से बनता है एंटिक फर्नीचर

कॉफी टेबल हो टी टेबल या फिर सेन्ट्रल टेबल के अलावा डाइनिंग टेबल ही क्यों ना हो। आसाम का ये छोटा सा पेड़ हर जगह ना केवल पूरी तरह से फिट बैठता है बल्कि एंटीक फर्नीचर का लुक भी देता है। इस छोटे से पेड़ का नाम है टी ट्री यानी चाय का पेड़।

आसाम राज्य के लगभग हर रेस्टोरेंट, घर या ऑफिस में चाय के छोटे से पेड़ (Tee Tree ) को बेस बनाकर टेबल फर्नीचर तैयार किया जाता है। इसे शेप देने में ना तो किसी तकनीकी का इस्तेमाल करते है और ना ही कस्टमाइज करते है। इसके अलावा इसे सजावट के सामान की तरह भी किया जाता है। इससे बनने वाले फर्नीचर खुद ब खुद एंटिक (Antique ) के श्रेणी में आ जाते हैं। आसाम में चाय पेड़ को बुश यानी झाड़ियों वाला पेड़ भी कहा जाता है। इसकी अनोखी बनावट पूरी तरह से नेचुरल होती है। इसके एक एक डाल की रचना प्रकृति ( Nature ) खुद करती है।   दरअसल लकड़ी का बना ये पूरा अनोखा बेस चाय बगान से मिलता है। ये सभी को पता है कि आसाम मतलब चाय बगान का राज्य, इसे एक नाम से और जाना जाता है वो है “कप ऑफ़ टी”। दरअसल आसाम में चाय की खेती कुटीर उद्योग की तरह है। जिसके पास चाहे जितना जमीन हो वो चाय की खेती जरुर करता है। इसकी खेती करने का एक सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि चाय के पेड़ों को अधिकतम 3 से 4 फुट उंचा रखा जाता है। साथ ही इसे बगान में ही गोल शेप दिया जाता है।  

मनोहारी चाय बागान के मैनेजर चन्द्रशेखर पाठक ने बताया कि चाय के पौधे की उम्र 40 से 70 साल तक होती है। इनके मुताबिक़ चाय का पौधारोपण करने पर यह करीब 40 से 50 साल तक लगातार चाय की पत्ती देता है, जबकि सीड के जरिए होने वाले पौधे लगभग 70 साल से ज्यादा समय तक चाय की पत्ती देते है। साल में 8 महीने ही इन पौधों से चाय के पत्ती निकाली जाती है। चाय के एक पेड़ से हर महीने चार बार पत्ती निकाली जाती है, जिसे बाद कई प्रोसेस के बाद चाय की पत्ती तैयार की जाती है। मतलब हफ्ते में एक बार इन पेड़ों से चाय की पत्ती निकाली जाती है। 

इन्होने बताया कि इस पेड़ की सबसे अनोखी बात ये है कि इसको किसी अन्य जानवर से खतरा नहीं होता, बल्कि इसे उन इंसेक्ट से बचाना पड़ता है जो बगान के बगान चाय के फसल को नुक्सान पहुंचाते है। इसमें सबसे पहला नाम आता है हैलो पेल्टीज इंसेक्ट का, जो एक एकड़ के बगान में होने वाले चाय की पत्ती को एक रात में साफ़ करने की ताकत रखते है।

ऐसे में चाय के बगान में लगे चाय के पेड़ों को बचाने के लिए एक एकड़ के प्लांट में 40 से 45 नार्मल स्पीसीज के पेड़ लगाए जाते हैं। इन पेड़ों के चारों तरफ करीब दो फुट चौड़ी पीले कलर का या सफ़ेद कलर का पॉलीथिन रैप किया जाता है। उस पोलीथिन में इन्सेक्ट को आसानी से आकर्षित कर चिपकाने वाले ग्लू लगाया जाता है, जिसमें चिपक कर इन्सेक्ट खुद ब खुद दम तोड़ देते हैं। ऐसे लगाए जाने वाले दो पेड़ों के बीच लगभग 40 से 50 मीटर की दूरी रखी जाती है। 

इनके मुताबिक़ अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद जब ये पेड़ चाय की फसल देना बंद कर देता है तब इसके पेड़ को बहुत ही सावधानी पूर्वक कटाई की जाती है, जिसे घरेलू या कमर्शियल फर्नीचर बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। शुरुवात के 7 से 8 महीने तक चाय के पौधे को बढ़ने दिया जाता है। इस दौरान इसमें कई डालियाँ भी निकल आती है, और यह झाड़ियों का रूप लेने लगता है। इसके बाद इसकी छंटाई की जाती है। इसे तबतक बढ़ने दिया जाता है जबतक यह 3 से 4 फुट का नहीं हो जाता। करीब चार साल तक इसकी एक बच्चे की तरह देखभाल की जाती है और इसे एक शेप दिया जाता है यानी इसे हाईट में नहीं बढ़ने दिया जाता बल्कि इसे सर्किल का शेप दिया जाता है। चाय के पेड़ों के बीच की दूरी 3 मीटर के आसपास रखी जाती है। समय के साथ इसकी डालियाँ इतनी हार्ड हो जाती है कि इसके बने फर्नीचर पर अगर एक साथ चार से पांच आदमी बैठ जाए तो ये टूटता नहीं है। साथ ही यह एक एंटिक रूप खुद ब खुद ले लेता है। 

टेबल का बेस बनाने के लिए इसमें कस्टमाइज के रूप में केवल कटाई और छटाई किया जाता है। तकनिकी के रूप में इसमें सबसे नीचे यामी पावें के रूप में अलग से जोड़ा जाता है। महोगनी रेस्टोरेंट के मैनेजर ने बताया कि चाय पेड़ के बेस का बना डाइनिंग टेबल अपने आप में एंटिक दिखाई पड़ता है। साथ ही ये रेस्टोरेंट को एक प्रीमियर लुक देता है। इसकी कीमत पेड़ों के साइज और क्वालिटी पर निर्भर होती है। इसमें चमक और कलरफुल दिखने के लिए इसे डिफरेंट कलर और वार्निश किया जाता है।

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